सेकुलर हिंदुस्तान में यह कैसा हिजाबिस्तान?

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सेकुलर हिंदुस्तान में यह कैसा हिजाबिस्तान?

सरयूसुत मिश्र । हिजाब का स्थानीय विवाद हिजाबी प्रधानमंत्री तक पहुंच गया है। हिजाबी तनाव जिस तरह से पूरे देश में फैल गया है वह चिंतित करने वाला है। गुलामी से आजादी के संध्याकाल में देश का धार्मिक विभाजन जिस बीज और कोख से उपजा था क्या वह आज भी विद्यमान है? तेजाबी हिजाबी विस्फोट से निर्मित पाकिस्तान से भारत विरोधी छुटपुट पटाखे रोज फूटते हैं।



संविधान और शरीयत की टकराहटः आजादी के अमृत काल में भी भारत की विविधता और बहुलता की सांस्कृतिक और विचारात्मक एकता इतने हिजाब ओढ़े हुए है यह धीरे-धीरे बेपर्दा हो रहा है। हिजाब विवाद की अबौद्धिक लड़ाई को देखकर लगता है कि सेकुलर हिंदुस्तान में यह कैसा हिजाबिस्तान विकसित हो रहा है। संविधान और शरीयत की टकराहट राष्ट्र के लिए क्या खतरे की आहट बन रही है? शिक्षा संस्थान अपने अनुशासन से चलेंगे या धार्मिक विधान और परंपरा से? कोई साड़ी पहने, सलवार पहने, जींस पहने, हिजाब पहने या कुछ और पहने, यह निजी पसंद है। इस पर ना कोई रोक है और ना हो सकती है। विवाद यह है कि शिक्षा संस्थान में निर्धारित ड्रेस कोड मान्य किया जाएगा या नहीं? जो लोग शिक्षा संस्थान के ड्रेस कोड का अनुशासन नहीं मान रहे हैं, वह क्या अनुशासन तोड़ने का काम नहीं कर रहे हैं? अभी शिक्षा संस्थान के प्रावधान नहीं मानने वाली सोच आगे चलकर संविधान मानने से भी इनकार करने की सोच बन सकती है। सीएए और एनआरसी के मामले में ऐसा ही रुख देखने को मिला था।



धर्म और मजहब में सुधार की जरूरतः हिजाबी विचारधारा में नए-नए जिन्ना पैदा हो रहे हैं। एक जिन्ना ने भारत को बांटने का काम किया, और आज के जिन्ना दिलों को बांट रहे हैं। नफरत और अलगाववाद उनकी राजनीतिक जमा पूंजी है। इस्लाम भाईचारे और दया क्षमा का धर्म है। फिर कट्टरता, अतिवाद, आतंकवाद, इस्लाम के साथ ही क्यों जुड़ते हैं? धर्म जीवन के लिए है। जीवन धर्म के लिए नहीं है। जीवन वर्तमान में होता है ना कि भूत और भविष्य में। भूतकाल की मान्यताएं और परंपराएं यदि वर्तमान जीवन के लिए संकट बनने लगे तो उनको छोड़ना ही जीवन धर्म होता है। जिस धर्म दर्शन और मजहब में आत्म सुधार तंत्र गतिशील नहीं होता, वह गतिहीन हो जाता है। ऐसी परिस्थिति धर्म और मजहब पर ही सवालिया निशान खड़े करती हैं। दुनिया का कौन सा धर्म है जिसमें समय के अनुसार बदलाव नहीं हुआ है। इस्लामी जगत में सुधार का सवाल हमेशा होता रहा है। आधुनिक जीवन शैली और मूल्यों से मेल नहीं खाने वाली प्रथाओं को बदलना ही जीवित समाज की निशानी है।



इस्लाम में व्याप्त कुप्रथाएंः बहुपत्नी प्रथा का चलन, तीन तलाक, हिजाब, बुर्का की प्रथाओं पर इस समाज को सोचना पड़ेगा। दुनिया के दूसरे इस्लामी देशों में रूढ़िवादी प्रथाओं के प्रति कट्टरता शायद भारत से कम है। पाकिस्तान में महिला प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो बिंदास लड़की थी। उन्होंने तो अपनी आजादी पर हिजाब को महत्व नहीं दिया। हिजाब बुर्का पहनना या नहीं पहनना नितांत निजी है। लड़की जो चाहे पहने, जो ना चाहे नहीं पहने, लड़की पर धार्मिक परंपरा के नाम पर बंदिश नहीं होना चाहिए। अगर फिल्मी हीरोइन हिजाब को स्वीकार करती तो देश कितनी मशहूर और खूबसूरत अदाकाराओं से महरूम रह जाता। अब बात हिजाबी प्रधानमंत्री के मंसूबों पर कर लेते हैं। भारत के प्रधानमंत्री का पद, हर भारतीय के लिए उपलब्ध है, संघर्ष और लीडरशिप के साथ बहुमत का समर्थन रखने वाला कोई भी नागरिक प्रधानमंत्री बन सकता है। हिजाबी प्रधानमंत्री के पीछे शायद लोकतांत्रिक भाव नहीं बल्कि कब्जे की भावना है। यह भावना शायद इतिहास से जन्म ले रही है। मुगल जिहादियों ने बहुलतावादी सनातन संस्कृति के प्रतीकों को ध्वस्त किया। लाखों निरपराध लोगों को मौत के घाट उतारा। यह बहुत दुर्भाग्यजनक है कि अभी भी मुस्लिम समाज का एक वर्ग इन आक्रान्ताओं को अपना नायक मानता है। आज नया भारत अपनी सांस्कृतिक अस्मिता और गौरव के लिए आक्रामक है। हिजाबी सोच अब निजी ही हो सकती है। देश पर कब्जा या अलगाव अब आत्मघात के अलावा कुछ नहीं हो सकता।



मजहबी तालीम तालिबान को जन्म देती हैः हिजाबी सोच से ज्यादा दोमुहि सोच और चेहरे ज्यादा खतरनाक हैं। दो मुंहे चेहरे और दो मुंहे सांप की कहावत हमेशा सुनने को मिलती है। देश को विभाजित करने वाले जिन्ना का चेहरा तो सार्वजनिक था। लेकिन कितने चेहरे थे जो बात एकता की कर रहे थे और विभाजन के लिए आग में घी डाल रहे थे। शांति की बात और अशांति के काम से बड़ा नुकसान पहुंचता है। इस्लाम शिक्षा को सर्वाधिक महत्व देता है। सवाल शिक्षा कैसी हो इसका है। मजहबी तालीम तालिबान को जन्म देती है। तालिबान अमानवीयता, क्रूरता और महिलाओं के प्रति हैवानियत को अंजाम देता है। मजहबी शिक्षा की खुराक का कमाल होता है कि आधुनिक शिक्षा भी उस पर कोई असर नहीं डालती। आतंक और जिहाद के अंतरराष्ट्रीय चेहरे आधुनिक शिक्षा प्राप्त थे, लेकिन उन्होंने जिहाद चुना। ओसामा बिन लादेन सिविल इंजीनियर था। अल बगदादी पीएचडी होल्डर और हामिद सईद  लेक्चरर, फिर भी जिहाद? इसी शिक्षा और सोच को बदलना है। 



भारतीयता का शंखनाद चाहिएः भारत में हिंदू, सिख, मुस्लिम, ईसाई समुदाय में हिंदू और सिख प्रधानमंत्री बन चुके हैं, राष्ट्रपति के संवैधानिक पद पर दो-दो मुस्लिम राष्ट्रपति रहे हैं, उपराष्ट्रपति का पद भी मुस्लिम व्यक्ति संभाल चुके हैं, मुख्यमंत्री और मंत्री भी इस समाज से होते रहे हैं। भारत को हिजाब और भगवा का विवाद नहीं, आपसी सहयोग और संवाद चाहिए। भारत को  हिजाब का पैगाम नहीं, अब्दुल कलाम चाहिए। युद्ध में टैंक उड़ाने वाले अब्दुल हमीद चाहिए। हमें कबीर और रसखान चाहिए। इन सबसे ऊपर हमें भारतीय आत्मा और ईमान चाहिए। हमें लड़कियों के लिए खुला आसमान चाहिए। चांद और सूरज पर पहुंचने वाला भारतीय विज्ञान चाहिए। हमें भारतीयता की पहचान चाहिए। हिंदू मुस्लिम से ज्यादा हमें भारतीय स्वाभिमान चाहिए। हमें हिजाब नहीं किताब चाहिए। हमें दो मुंहे नहीं चेहरे साफ चाहिए। लड़के-लड़की के चमकते चेहरे चाहिए। नहीं चेहरों पर नकाब चाहिए। दुनिया के मस्तक पर हिंदुस्तानी ताज चाहिए, लड़ाई नहीं गले मिलने का भारतीयता का शंखनाद चाहिए।

 


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